मणिमोहन चवरे 'निमाड़ी' ____________________________________________________________________________________________________

पहला अक्षर सीखा‘माँ’। फिर, माँ से सीखी मातृभाषा। अपनी मातृभाषा निमाड़ी को जैसा, जितना समझ पाया, विनीत भाव से अर्पित करता हूँ।

छवि संग्रह

म.प्र. संस्कृति परिषद, हिंदी ग्रंथ अकादमी भोपाल, एवं कालिदास अकादमी उज्जैन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य-संवाद में, ‘भाषा-विमर्श’ सत्र के . अध्यक्ष, मणिमोहन चवरे का उद्बोधन।

निमाड़ी लोकभाषा के रचना-विधान पर कार्यशाला लेते, मणिमोहन चवरे, खरगोन (म.प्र) 23 मार्च 2025

विक्रम वि.वि.उज्जैन में, ग्यारह देशों के साहित्यकारों के अंतरराष्ट्रीय साहित्य-संवाद में, . निमाड़ी भाषाविद मणिमोहन चवरे ने निमाड़ी को, भाषा वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर, . एक समृद्ध लोकभाषा का होना सिद्ध किया।

निमाड़ी कार्यशाला खरगोन में ‘भाषा-विमर्श’ के अवसर पर , मणिमोहन चवरे तथा सुधि साहित्यकार।

अपने चर्चित निमाड़ी काव्य-संग्रह,’आपड़ी की थापड़ी’ के लोकार्पण के अवसर पर, कवि मणिमोहन चवरे ने, पुस्तक की रचना प्रक्रिया पर अपनी बात रखते हुए, संग्रह की दोएक कविताएँ सुनाई। (30 सितंबर 2000 इंदौर म.प्र.।)

देशी भाषाओं की अवदशा के इस दौर में चवरेजी की यह पुस्तक, भाषाविज्ञान की दृष्टि से उत्कृष्ट एवं मील का पत्थर है। लेखक ने भाषाविज्ञान जैसे दुरूह एवं शुष्क विषय को सरल और सरस बना दिया है।              (डॉ शैलेन्द्र शर्मा, लोकार्पण पर) 14 मई 2014 इंदौर।

दादा शिवकुमार चवरे के व्यक्तित्व-कृतित्व पर प्रकाशित, ‘स्मृति-बिंब’ के विमोचन पर . संपादक, मणिमोहन चवरे का उद्बोधन। वर्ष 2013 कालिदास अकादमी, उज्जैन (म.प्र.)

निमाड़ी का प्रथम नाटक, ‘भूख’(1969)। लड़कों और लड़कियों को साथ-साथ मंच पर लाने का श्रेय इसी लोकप्रिय नाटक को जाता है। लेखक, निर्देशक एवं केन्द्रीय पात्र बीस वर्षीय नौजवान, मणिमोहन चवरे ‘निमाड़ी’