परिष्कृत भाषाओं में हम चाहे जितनी भी परिचर्चाएँ क्यों न कर लें, अपनी आंचलिक बोली के दो बोल बोलते ही आत्मीयता का सैलाब उमड़ पड़ता है।
पहला अक्षर सीखा‘माँ’। फिर, माँ से सीखी मातृभाषा। अपनी मातृभाषा निमाड़ी को जैसा, जितना समझ पाया, विनीत भाव से अर्पित करता हूँ।
मणिमोहन चवरे 'निमाड़ी' ____________________________________________________________________________________________________


मणिमोहन चवरे 'निमाड़ी'


मणिमोहन चवरे 'निमाड़ी'
जन्म : 14 जनवरी, 1949
खंडवा (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी/अर्थशास्त्र),
कथक-नृत्य विशारद
प्रकाशन :
1. म्हारो देस निमाड़
2. आपड़ी की थापड़ी
3. क्रांतिवीर भास्करराव चवरे
4. निमाड़ी का भाषा-विज्ञान वर्ण और वर्तनी
5. निमाड़ी लोकभाषा : उद्गम, विकास स्वरुप और साहित्य
संपादन :
1. लोक-मैत्रेय
2. भारतीय वायुसेना पत्रिका
3. सलुआ समाचार
4. स्मृति-बिंब
5. नार्मदीय जगत
संप्रति :
सेवा निवृत्त वारंट ऑफिसर (भा.वा.से.)
सी-1, रुनाल मिराकल
डी.वाई. पाटिल कॉलेज रोड़
सेक्टर-29, PCNT, पूना-44
मोबाईल : 98509-80334
निमाड़ी भाषा के अनन्य साधक: मणिमोहन चवरे ‘निमाड़ी’
मणिमोहन चवरे ‘निमाड़ी’ किसी औपचारिक परिचय के मोहताज नहीं हैं। वे साहित्य और भाषा के क्षेत्र में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनका .व्यक्तित्व, केवल लेखन तक ही सीमित नहीं है; वे एक समर्पित शोधकर्ता, भाषाविद्, साहित्यकार, संपादक तथा भाषा-संस्कृति के संरक्षक हैं। उन्होंने अपना जीवन लोकभाषा-निमाड़ी की सेवा में समर्पित कर दिया है।
मणिमोहन जी का जीवन और कार्य अत्यंत प्रेरणादायक है। उन्होंने मात्र 11 वर्ष की उम्र में लेखन आरंभ किया, और 20 वर्ष की उम्र में, नाट्यशास्त्रीय तत्वों के अनुरूप निमाड़ी भाषा का पहला नाटक, ‘भूख’ लिखकर, सन् 1969 में मंचित तथा निर्देशित भी किया। एक वर्ष बाद, सन् 1970 में उनकी प्रथम निमाड़ी पुस्तक, ‘म्हारो देस निमाड़’ प्रकाशित हुई। तब से लेकर आज तक उनकी निमाड़ी भाषा पर लिखी गई, प्रायः सभी प्रोक्तियाँ शोध की कसौटी पर कसी हुई पाई गई हैं। चवरेजी उन विरले साहित्यकारों में से हैं जो लेखन को एक साधना मानते हैं और भाषा को संस्कृति की संवाहिका ।
आज जब हम निमाड़ी भाषा की चर्चा करते हैं, तो उसके मानक तथा प्रामाणिक भाषिक-रूपों और ऐतिहासिक संदर्भों के लिए जो आधारशिला तैयार हुई है, उसमें चवरेजी के ग्रंथों का योगदान अपरिमेय है। उनका ‘निमाड़ी का भाषा-विज्ञान, वर्ण और वर्तनी’ नामक ग्रंथ, निमाड़ी भाषा के परिनिष्ठित रूप को समझने तथा साहित्यिक रचनाओं को गढ़ने, के लिए एक कारगर दिशा-सूचक विधान जैसा है।
उनकी प्रमुख कृतियों में, ‘म्हारो देस निमाड़’(1970), ‘आपड़ी की थापड़ी’(2000), क्रांतिवीर भास्करराव चवरे’ (2011), ‘निमाड़ी का भाषा-विज्ञान वर्ण और वर्तनी’(2014), ‘लोक-मैत्रेय’(2022) तथा ‘निमाड़ी लोकभाषा: उद्गम, विकास स्वरूप और साहित्य’(2025) शामिल हैं। अंतिम दो ग्रंथ, निमाड़ी भाषा और साहित्य में, ‘मील के पत्थर’ हैं।
मणिमोहन जी उन विरले कर्मयोगियों में से हैं जो बिना किसी प्रचार, बिना किसी प्रसिद्धि की लालसा के, वर्षों से नि:स्वार्थ भाव से लोकभाषा की सेवा कर रहे हैं।
~ एकता कश्मीरे
लोक जीवन के चतुर चितेरे श्री मणिमोहन चवरे 'निमाड़ी'
दि. 14 जनवरी 1949 को खंडवा में जन्मे मणिमोहन चवरे ने हिन्दी और अर्थशास्त्र में एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण करके नृत्य। विद्या में भी विशारद की उपाधि प्राप्त की है। आप ग्यारह वर्ष की आयु में ही निमाड़ो कविताएँ लिखने में रुचि लेने लगे थे। इन्हीं दिनों आपने पहली निमाड़ी कविता 'एक दिन की हाऊँ बात बताऊँ' लिखी, मित्रों को बतायी और जब सभी ने प्रशंसा की तो फिर लेखन का ऐसा चसका लगा कि कलम रुकी ही नहीं, आपका पहला निमाड़ी काव्य संग्रह 'म्हारो देस निमाड़' सन् 1970 में प्रकाशित हुआ, जो साहित्य जगत में काफी सराहा गया। आप अधिकतर पारिवारिक विसंगतियों पर हास्यरस की सृष्टि करने में निपुण है।
आप भारतीय वायुसेवा में वारंट अधिकारी पद पर कई वर्षों तक दक्षिण भारत में रहे। इस क्षेत्र में रह कर भी आप साहित्य से जुड़े रहे। वहाँ आपने 'इंडियन एयर फोर्स जर्नल', 'सलुआ समाचार पत्रिका' का सम्पादन तथा 'राजस्थान रा गीत' और 'जै जवान जै किसान' कृतियाँ सम्पादित की। नाटक तथा प्रहसनों का लेखन-निर्देशन तथा मंच संचालन में भी कभी पीछे नही रहे। आपके निमाड़ी गीत, वार्ता, साक्षात्कार और चिंतन परक आलेख आकाशवाणी इंदौर-ग्वालियर, बंगलोर तथा जोधपर केंद्रों से प्रसारित होते रहे है।
~ बाबूलाल सेन
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निमाड़ी भाषाविद मणिमोहन चवरे, मध्यप्रदेश की चार प्रमुख लोकभषाओं में, ‘निमाड़ी लोकभाषा’ की धरोहर को समेटे हुए एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिनकी लेखनी से न केवल शब्द निकलते हैं, बल्कि संस्कृति की साँसें भी चलती हैं। वे केवल एक लेखक ही नहीं, बल्कि लोकजीवन के चतुर चितेरे और लोकभाषा निमाड़ी के एक कुशल शिक्षक भी हैं। वे निमाड़ी आत्मा के संवाहक हैं। लेखकों, अक्षर-संयोजकों, संपादकों तथा प्रूफ़रीडरों को भाषा की बारीकियाँ सिखाना उनका मिशन रहा है। ताकि लोकसाहित्य की पुस्तकों की भाषा छनकर पाठकों के हाथ में आ सके। इसके लिए उन्होंने समय-समय पर, व्हाट्सएप्प ग्रुप्स पर और गूगल मीट पर ऑनलाइन निमाड़ी की अध्ययनशाला चलाई, साथ ही उन्होंने निमाड़ी लोकभाषा की वर्कशॉप भी आयोजित की।
~ अक्षय कुमार चवरे
पाठक समीक्षा
मनी मोहन चौरे के लेखन ने मुझे प्रेरित किया। अद्भुत अनुभव!
सुरेश पाटीदार
इंदौर
मनी मोहन चौरे की लेखनी ने मेरी सोच को नया दृष्टिकोण दिया। धन्यवाद!
सीमा जैन
उज्जैन
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