

निमाड़ी लोकभाषा : एक परिचय
निमाड़ी का भौगोलिक क्षेत्र
मध्यप्रदेश के दक्षिण-पश्चिम भूभाग, ‘निमाड़-अंचल’ में लगभग 50 लाख लोग, मातृभाषा अथवा संपर्कभाषा के रूप में, 'निमाड़ी’ का प्रयोग करते हैं। निमाड़ी, इस क्षेत्र के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अनुष्ठानिक लोकव्यवहार की प्रमुख भाषा है। ‘निमाड़ क्षेत्र’ मध्यप्रदेश के अलीराजपुर, धार, इंदौर, देवास, होशंगाबाद, बैतूल तथा महाराष्ट्र के अमरावती, बुलढाणा, जलगाँव, धुले, और नंदूरबार जिलों से सीमाबद्ध है। लगभग 26 हजार वर्ग कि.मी. में फैले इस निमाड़ी-भाषी क्षेत्र में मुख्यतः खंडवा, खरगोन, बड़वानी, बुरहानपुर और हरदा तथा धार जिले के कुछ भाग आते हैं, इसके अलावा सीमावर्ती देवास तथा अलीराजपुर के कुछ खेड़े-कस्बों में भी निमाड़ी बोली जाती है। {विस्तृत आलेख के लिए, eBook ‘ निमाड़ी लोकभाषा उद्भव विकास स्वरुप और साहित्य’ पृष्ठ 9-11 देखें ।}
भारतीय भाषाओं में निमाड़ी
निमाड़ी भाषा, भारत में प्रचलित पाँच प्रमुख भाषा परिवारों में, सबसे बड़े भाषाई परिवार, ‘भारतीय आर्य भाषा परिवार’ की वंश-परंपरा में आती है; जिसका वंशावतरण इस प्रकार है :-
भारतीय आर्य भाषा परिवार : वैदिक(संस्कृत) b लौकिक(संस्कृत) b पाली b प्राकृत b शौरसेनी प्राकृत b
शौरसेनी अपभ्रंश b पश्चिमी(हिंदी)समूह b निमाड़ी ( वंश तालिका हेतु, यहाँ क्लिक करें )
निमाड़ी की प्रकृति को ठीक से नहीं समझ पाने के कारण, सन् 1894 – 1928 में, भारतीय भाषाई सर्वेक्षण में डॉ.जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने भ्रमवश निमाड़ी को राजस्थानी की एक उपबोली बता दिया था; बाद के कुछ भाषाविदों ने भी अनुकरण की परंपरा को ही निभाया। पहली बार सन् 1960 में डॉ. कृष्णलाल हंस ने, निमाड़ी को राजस्थानी की अपेक्षा पश्चिमी हिंदी के अधिक निकट बताया। इन पंक्तियों के लेखक ने निमाड़ी की वाणी-वर्तनी तथा भाषिक-तत्वों के भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर यह सुनिश्चित किया कि, ‘निमाड़ी भाषा’, ‘अधुनिक भारतीय आर्य भाषा परिवार’ में शौरसेनी अपभ्रंश से विकसित पश्चिमी हिंदी समूह की एक स्वतंत्र लोकभाषा है।
निमाड़ी वाङ्मय का व्यापक एवं समृद्ध वाचिक साहित्य है; और लिखित साहित्य भी, अनेक विधाओं में उपलब्ध है। निमाड़ी की अपनी ध्वनि, अपनी अक्षरी एवं विशिष्ट वर्णों से युक्त वर्णमाला है। इसका अपना शब्दकोश, व्याकरण तथा अपना सटीक भाषावैज्ञानिक आधार भी है।
निमाड़ी-वर्णमाला
आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं की तरह निमाड़ी भी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। व्याकरण यदि भाषा का संविधान है, तो वर्णमाला, उसकी आधारभूत संरचना; जोकि भाषा के अक्षरों और ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करती है।
निमाड़ी की वर्णमाला में 10 स्वर, 33 व्यंजन, 1 अनुस्वार, 1 विशिष्ट वर्ण, 1 विलंबित ‘अs’ तथा 1 चंद्रबिंदु (स्वर का नासिक्य अभिलक्षण), सहित, मिलाकर कुल 46 वर्ण हैं। {विस्तार हेतु देखे - ‘निमाड़ी लोकभाषा उद्भव विकास स्वरुप और साहित्य’, निमाड़ी का ध्वनि प्रकरण - पृष्ठ 67-68}
निमाड़ी भाषा की प्रकृति और विशेषताएँ
1. निमाड़ी मूल रूप से ओकारांत भाषा है। इसके संज्ञा आदि एकवचन ओकारांत शब्द, बहुवचन में आकारांत हो जाते हैं।
यथा- (एक वचन) – छोरो, कुतरो, घोड़ो, बड़ो, घड़ो, जातो, लिखतो, खातो
(बहुवचन) – छोरा, कुतरा, घोड़ा, बड़ा, घड़ा, जाता, लिखता, खाता
2. निमाड़ी की विशेष ध्वनि विलंबित-अ (अs) एक अयोगवाह स्वर वर्ण है।
इसका प्रयोग मुख्य रूप से अकारांत शब्दों के अंत्याक्षर के साथ किया जाता है। इससे अंतिम वर्ण में निहित ‘अ’
स्वर की ध्वनि विलंबित हो जाती है। विलंबित-‘अs’ का प्रयोग, शब्द की ध्वनि, वर्तनी एवं अर्थ को प्रभावित करता है।
यथा – मनs (मैंने ), मखs (मुझे), आगs (आगे), गाड़ीनs (गाड़ियाँ), भमसारs (सुबह)।
[ टिप्पणी – विलंबित अ-s स्वर की ध्वनि और व्यंजन वर्ण ‘ळ’ की ध्वनि, तथा इनके प्रयोग, निमाड़ी भाषा के मुकुट में
‘सुरखाब के ‘पंख’ जैसे हैं ; इन दो ध्वनियों के बिना निमाड़ी भाषा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। इन ध्वनियों से, निमाड़ी
शब्दों के लहजे, वर्तनी और अर्थ भी प्रभावित होते हैं।]
3. निमाड़ी की दूसरी विशेष ध्वनि ‘ळ’ (अधिकांश लोगों को भ्रम है कि यह ध्वनि मराठी से निमाड़ी में आई है।) लगभग
चार हजार वर्ष पूर्व, द्रविड़ से वैदिक-संस्कृत में होते हुए निमाड़ी में पहुँची है; (केवल लौकिक संस्कृत में इसकी उपस्थिति
नहीं थी।) निमाड़ी वर्णमाला में, ‘ळ’ और ‘ल’ दोनों ध्वनियों को स्थान मिला है। यह ध्वनि हिंदी की वर्णमाला
में, अगस्त 2024, तक नहीं थी; अब जोड़ ली गई है। {देखें eBook,‘निमाड़ी का भाषाविज्ञान वर्ण और वर्तनी,’पाठ, क्र.२8 पृष्ठ - 94–97}
यथा – माळा, काजळ, काळई, जळवाय, साळो, डोळो, छावळई, धुळ्ळो।
4. देवनागरी के 9 पारंपरिक वर्ण, ऋ ङ ञ श ष क्ष ज्ञ श्र तथा आयोगवाह विसर्ग [:] निमाड़ी वर्णमाला में निषिद्ध हैं।
इनमें, श, ष और विसर्ग को छोड़कर, अन्य ध्वनियाँ भाषा में व्यवह्रत होती हैं, परंतु इनकी वर्तनी पारंपरिक न होकर,
इनके लिप्यंकन की निमाड़ी में अलग व्यवस्था है।
यथा – ज्ञानी - ग्यानी, आशीर्वाद – आसिरवाद, वर्ष – वरस, मृग – मिरग
5. निमाड़ी में आसन्न भूतकाल तथा पूर्ण वर्तमानकाल की क्रिया, ‘है’ के लिए, ‘छे’ का प्रयोग किया जाता है।
यथा - गाड़ी आईनs उभेल छे (गाड़ी आकर खड़ी हुई है)। पाणी गरम छे (पानी गर्म है)।
6 . निमाड़ी में, सामान्य, पूर्ण तथा तात्कालिक वर्तमान काल की सहायक क्रियाएँ, ‘ज’ प्रत्यय लगाकर बनाई जाती हैं।
यथा – देखज (देखता है), देख्योज (देखा है), देखी रह्योज (देख रहा है)।
भुआणी-निमाड़ी में ‘च’ प्रत्यय लगाया जाता है – देखच (देखता है), रह्याच (रहा है)।
बलाही-निमाड़ी में यहाँ ‘त’ प्रत्यय लगाया जाता है – जाणुत (जाना है), गयात (गए हैं)।
एकीकृत निमाड़ी की अवधारणा
पारंपरिक सोच के विपरीत, मामूली से अंतर को लेकर, किसी विस्तृत क्षेत्र की बोली को अनेक उपबोलियों में बाँटने के बजाय, उस क्षेत्र के प्रचलित बोलीरूपों को समन्वयित करने की संभावना तलाशी जानी चाहिए है। हमने निमाड़ी के प्रकरण में इसी नवाचार-सोच का प्रयोग किया है। परिणामस्वरूप निमाड़ी के भाषाविज्ञान और रचित साहित्य में, अब एकीकृत निमाड़ी की अवधारणा साकार होते देखी जा सकती है; जिसमें ‘पूर्वी निमाड़ी’, ‘पश्चिमी निमाड़ी’, ‘भुआणी निमाड़ी’ और ‘बलाही निमाड़ी’ के रूप समाहित हैं। {विस्तृत आलेख eBook, ‘निमाड़ी का भाषाविज्ञान वर्ण और वर्तनी’ पृष्ठ-11-12 }
निमाड़ी भाषा के विकास को सुनिश्चित करते कुछ महत्वपूर्ण ग्रंथ
( किसी भी भाषा की विकास-यात्रा में पहला योगदान उस क्षेत्र के भाषा-भाषी लोगों का ही होता है, और उसके बाद, सुधि रचनाकारों का। निमाड़ी में यहाँ उन उपलब्ध ग्रंथों का संक्षित उल्लेख है, जिनके रचनाकारों ने, अपने अध्ययन को निमाड़ी भाषा पर केंद्रित किया है। निमाड़ी भाषा की विकास यात्रा में इन महत्वपूर्ण ग्रंथों का विशेष योगदान है।)
1. : ‘एक बालूड़ो दs’ – श्री बलराम पगारे (1954) इस हस्तलिखित, अप्रकाशित, वृहद ग्रंथ में, दो हजार से अधिक, प्रचलित निमाड़ी शब्दों को, शब्दार्थ सहित ‘सूचीबद्ध’ किया गया है। इसके अलावा निमाड़ का इतिहास, निमाड़ी संस्कृति, लोकजीवन, लोकगीतों की व्याख्या आदि विषयों पर भी इसमें विस्तृत लेखन है।
2. ‘निमाड़ी और उसका साहित्य’ – डॉ कृष्णलाल हंस (1960) : निमाड़ी भाषा पर प्रथम शोध कार्य। इसमें निमाड़ी भाषी प्रदेश, भारतीय आर्य भाषाओं में निमाड़ी का स्थान, निमाड़ी का स्वरूप, भाषिक तत्वों का विस्तृत विवेचन, निमाड़ी साहित्य का सामान्य परिचय, लोकगीत, लोक कथाएँ, प्रकीर्ण साहित्य तथा निमाड़ी की संक्षिप्त शब्दार्थ सहित ‘शब्द-सूची आदि महत्वपूर्ण सामग्री है।
3. ‘निमाड़ी शब्दकोश’ – पद्मश्री पं. रामनारायण उपाध्याय (1989) : यह निमाड़ी भाषा का पहला, व्याकरणिक संकेतों सहित संक्षिप्त शब्दकोश है। इसके आरंभिक पृष्ठों में, निमाड़ी शब्दों में निहित शक्ति और अभिव्यक्ति सहित, भाषा के स्वरूप पर रोचक जानकारी प्रस्तुत की गई है।
4. ‘निमाड़ी की अक्षय शब्द-संपदा’– पद्मश्री पं. रामनारायण उपाध्याय (1994) : रोचक ढंग से लिखी गई निमाड़ी जन-जीवन और संस्कारों के अर्थ व्यंजक शब्दों की यह प्रथम पुस्तक है। इसकी पूर्वा में, निमाड़ के सांस्कृतिक इतिहास के झरोखे से भाषा के देशी शब्द, झाँकते नजर आते हैं। इसमें शब्दों का चित्रात्मक परिचय भी है।
5. ‘निमाड़ी साहित्य का इतिहास’ – डॉ श्रीराम परिहार (2008) : यह निमाड़ी भाषा की पहली पुस्तक है जिसमें,आरंभ से लेकर पुस्तक लिखे जाने तक की निमाड़ी रचनाओं को जुटाकर, निमाड़ी साहित्य का इतिहास लिखा गया है। इसके प्रथम अध्याय में निमाड़ और निमाड़ी भाषा की संक्षिप्त जानकारी का सूत्रात्मक वर्णन भी है। इसमें संग्रहीत रचनाओं के क्रम में, भाषा के विकास की झलक देखी जा सकती है।
6. ‘निमाड़ी - हिन्दी शब्दकोश, व्याकरण और अलंकार’ – श्री महादेव प्रसाद चतुर्वेदी ‘मध्या’ / श्री दिनकर राव दुबे ‘दिनेश’ (2009) : इस ग्रंथ में, लेखक द्वय ने क्रमशः निमाड़ी का वृहद शब्दकोश एवं व्याकरण तैयार किया है, तथा पारंपरिक काव्यशास्त्रानुसार, निमाड़ी काव्य में अलंकारों का रूपांतरण एवं निरूपण प्रस्तुत किया है
7. ‘निमाड़ी का भाषा-विज्ञान वर्ण और वर्तनी’ – मणिमोहन चवरे ‘निमाड़ी’ (2014) : निमाड़ी भाषा का पहला ग्रंथ जिसमें, निमाड़ी के सभी क्षेत्रीय रूपों के व्यापक शोध-सर्वे के आधार पर, निमाड़ी के ध्वनि एवं रूप तत्वों का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। साथ ही इसमें निमाड़ी की वर्णमाला निर्धारित करते हए, भाषा की वर्तनी-व्यवस्था के नियमन भी प्रस्तुत किए गए है। ग्रंथ की पीडीएफ़ अवलोकनार्थ उपलब्ध है। { यहाँ क्लिक करें }
8. ‘निमाड़ी लोकभाषा, उद्गम विकास स्वरूप और साहित्य’ – मणिमोहन चवरे ‘निमाड़ी’ (2024) ; इस स्वनाम व्याख्यात्मक ग्रंथ की पीडीएफ़, अवलोकनार्थ यहाँ उपलब्ध है। { यहाँ क्लिक करें }
9. ‘निमाड़ी की लोक-शब्दावली का सामाजिक, सांस्कृतिक व भाषा वैज्ञानिक अध्ययन’ – डॉ मीना साकल्ले (2018) डॉक्टरेट की . डिग्री हेतु चयनित विषय पर प्रकाशित यह ग्रंथ दो भागों में है। लोकशब्दावली हेतु एकत्रित एवं विश्लेषित सामग्री से लेखिका ने निमाड़ी . लोककथाओं की लगभग एक दर्जन पुस्तकें लिखकर एक महत्वपूर्ण काम किया है।
10. उल्लिखित ग्रंथों के अलावा ‘पी एच डी’ पदवी हेतु तैयार किए गए शोध-प्रबंध; ‘निमाड़ी भाषा, संस्कृति और साहित्य का अध्ययन’-- डॉ मालती प्रजापति, का योगदान भी, निमाड़ी भाषा के विकास में विशेष रूप से अंकित है।
[टिप्पणी: उपर्युक्त ग्रंथ, निमाड़ी-भाषा को जानने-समझने हेतु; पाठकों, रचनाकारों, शोधकर्ताओं तथा जिज्ञासुओं के लिए, उपयोगी तथा प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध कराते हैं।]
मणिमोहन चवरे 'निमाड़ी' ____________________________________________________________________________________________________

